| كلّ خوخ الأرض ينمو في جسد   | |
| و تكون الكلمة   | |
| و تكون الرغبة المحتدمه   | |
| سقط الظلّ عليها   | |
| لا أحد   | |
| لا أحد  ...  | |
| و تغنّي وحدها   | |
| في طريق العربات المهملة   | |
| كل شيء عندها   | |
| لقب للسنبلة   | |
| و تغنّي وحدها  :   | |
| البحيرات كثيره   | |
| و هي النهر الوحيد  .  | |
| قصّتي كانت قصيرة   | |
| و هي النهر الوحيد   | |
| سأراها في الشتاء   | |
| عنما تقتلني   | |
| و ستبكي   | |
| و ستضحك    | |
| عنما تقتلني   | |
| و أراها في الشتاء  .  | |
| انّني أذكر   | |
| أو لا أذكر   | |
| العمر تبخّر   | |
| في محطات القطارات   | |
| و في خطوتها  .  | |
| كان شيئا يشبه الحبّ   | |
| هواء يتكسّر   | |
| بين وجهين غريبين  ،   | |
| و موجا يتحجّر   | |
| بين صدرين قريبين  ،   | |
| و لا أذكرها  ...  | |
| و تغنّي وحدها   | |
| لمساء آخر هذا المساء   | |
| و أنادي وردها   | |
| تذهب الأرض هباء   | |
| حين تبكي وحدها  .  | |
| كلماتي كلمات   | |
| للشبابيك سماء   | |
| للعصافير فضاء   | |
| للخطى درب و للنهر مصبّ   | |
| و أنا للذكريات  .  | |
| كلماتي كلمات   | |
| و هي الأولى . أنا الأول   | |
| كنّا  . لم نكن   | |
| جاء الشتاء   | |
| دون أن تقتلني  ...  | |
| دون  أن تبكي و تضحك  .  | |
| كلمات   | |
| كلمات  . | 
لمساء آخر - محمود درويش
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